3/07/2007

पाकिस्‍तान में शास्‍त्रीय संगीत

खयाल दर्पण: एक यात्रा

अभय तिवारी

दिल्‍ली के युसुफ़ सईद ने एक रिसर्च फ़ेलोशिप के तहत छह माह से ज़्याद: पाकिस्तान में गुज़ारा और वहाँ के शास्त्रीय संगीत के परिदृश्य का अध्ययन किया. लाहौर, कराची, और इस्लामाबाद में घूमते हुये तमाम कलाकारों और विद्वानों से बातचीत, संगीत सम्मेलनों में शिरक़त, और संगीत संस्थानों में सैर को अपने कैमरे में क़ैद करके एक निहायत ही खूबसूरत फिल्‍म (खयाल दर्पण, 2006) को शकल दी.

ये फ़िल्म आपको चौंकाती है..पहले तो अपनी विषय वस्तु से ही..कम से कम मैं तो नहीं जानता था कि पाकिस्तान जैसे देश में शास्त्रीय संगीत जैसी कोई धारा भी है... इसलिये नहीं कि पाकिस्तान एक इस्लामी देश है.. बल्कि इसलिये कि आज से पहले हमने पाकिस्तान के नुसरत, साबरी बन्धु, आबिदा आदि की क़व्वालियां सुनी हैं..मेंहदी हसन, ग़ुलाम अली, फ़रीदा खानम की ग़ज़लों को गुनगुनाया है..पर शुद्ध रागबद्ध शस्त्रीय संगीत कानों तक नहीं पहुँचा.

विभाजन के पहले हिन्दुस्तानी शास्त्रीय परम्परा के तमाम संगीतज्ञ- हिन्दू और मुसलमान-बिना किसी साम्प्रदायिक चेतना के संगीत में एकरंग थे. मिसाल के तौर पर मैहर के अलाउद्दीन खां साहब, मुसलमान होते हुये सरस्वती के बड़े भारी उपासक थे और उनकी बेटियों के नाम हिन्दू देवियों पर रखे गये थे. छोटी बेटी अन्नपूर्णा देवी का नाम अक्सर सुना जाता है, जिनका विवाह रवि शंकर के साथ हुआ था. विभाजन के साम्प्रदायिक बवंडर में बहुत सारे संगीतज्ञ चपेटे गये, और पाकिस्तान तशरीफ़ ले गये. जहाँ बाद के वर्षों में शास्त्रीय संगीत को एक ग़ैर इस्लामी फ़न मानकर उसके प्रचार प्रसार की तरफ़ कोई ध्यान नहीं दिया गया, कलाकार मायूस हो गये.

खयाल दर्पण इन मोहाज़िर फ़नकारों, और उनके संगीत के तब से लेकर अब तक के सफ़र का एक मधुर बयान होने के साथ साथ जातीय पहचान, राष्ट्रवाद संगीत और इस्लाम के संबंध, क़व्वाली और ग़ज़ल बनाम शास्त्रीय संगीत सारे सवालों से रू-बरू होती चलती है. उन तमाम अपने फ़न में माहिर कलाकारों की आवाज़ों के लुत्फ़ के अलावा यह फ़िल्म, पाकिस्तान और वहाँ की अवाम के मुतल्लिक बहुत सारे ऐसे पहलू उजागर करती है जिसके बारे में हमें लगता है हम जानते होंगे, और फिर देखते हुए एकदम पहली दफा जानने-सी खुशी होती है. 105 मिनट की इस फ़िल्म को देखना एक आनन्ददायक और ज्ञानवर्धक अनुभव है.

5 comments:

Anonymous said...

शुक्रिया. पर ये फ़िल्म भारत में कहां उपलब्ध होगी, बताएंगे आप ?

azdak said...

खयाल दर्पण की डीवीडी के लिए आप सीधे युसुफ को ईमेल से संपर्क करें. पता है: ysaeed7@yahoo.com

Pratyaksha said...

देखने लायक होगी ये फिल्म

ysaeed said...

is film ke barey mein aur jankari www.ektara.org ya www.khayaldarpan.info se haasil kar sakte hain.

Parul Agrawal said...

i happened to see this movie when it was screened at IHC .... as you said the movie came as pleasent and bitter surprises at many turns....fr example how Raga names from vedic origin have been changed to urdu synonyms...to suit the islamic temprament ....this year at PSBT festival I saw Naheed's Story..... another documentry that showcases struggle in the genre of dance ....well, be it music be it dance wht these movies convey is the fact that ..pakistan is going through a different kind of dillema which is not at all about "What to choose" Ironically its about "HOW to choose within the possibility of appeasment"