ऐसी खुशनसीबी विरले फिल्मकारों के ही हिस्से आई होगी कि उनके काम को ज़्यां लुक गोदार और वेर्नर हर्जोग जैसे पहुंचे हुए माध्यम-पंडितों की प्रशस्ति मिले. और वह भी तब जब फिल्मकार हॉलीवुड और यूरोप का न होकर एशियाई ‘तमाशे’ के परिदृश्य से हो. ईरान से हो जहां सिनेमा के आरंभ से ऐसी कोई सशक्त फिल्मी परंपरा नहीं रही, और लगभग शाह के ज़माने तक लोग सिनेमा हॉलों में मनोरंजन के लिए हॉलीवुड और अपने बंबईया फिल्मों की खुराकों से काम चलाते रहे. मगर उसी ईरान के एक फिल्मकार के लिए गोदार कहते हैं: ‘’डीडब्ल्यू ग्रिफिथ के साथ फिल्में शुरु होती हैं और अब्बास क्यारोस्तामी के यहां आकर खत्म होती हैं’’ हर्जोग साहब कहते हैं: ‘’भले हमें अभी इसका अहसास न हो रहा हो मगर हम एक क्यारोस्तामी के दौर में रह रहे हैं.’’
आज का ईरानी सिनेमा अब न केवल आत्मनिर्भर और प्रभावी देसी खुराक जुटाने में समर्थ है, बल्कि नब्बे के दशक से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसने अपनी एक ऐसी पहचान खडी की है कि उसकी सरलता व प्रभाव के सामने बडे-बडे सिने महापुरुष भी दांतों में उंगली डाल हतप्रभ खडे रह जाते हैं. आज जब सामान्य तौर पर समूची दुनिया में सिनेमा के स्तर और फास्ट फुड में विशेष अंतर नहीं रहा, और स्थिति काफी डरावनी और हताशाजनक है, ईरानी सिनेमा जैसे फिल्म की नई परिभाषायें गढता अभी भी उसकी बुलंदियों के नये-नये घोषणापत्र तैयार कर रहा है. आईये, चंद किस्तों में इस अद्भुत एशियाई सिने-विरासत की पहचान करें.
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