मंटू इधर फिर विचलित लग रहे थे. मुंह खोलकर कहा नहीं लेकिन दैहिक भंगिमाओं से ज़ाहिर कर रहे थे कि कैसी गहरी पीडा से गुज़र रहे हैं. हमारे हाथ, झोले, किताबों के आजू-बाजू और टीवी पर जब से ईरानी फिल्मों की संख्या बढी है, तभी से मंटू बाबू की यह नई बेचैनी छलकना शुरु हुई है. आज रहा नहीं गया होगा सो सुबह-सुबह बिना दांत-मुंह धोये सीधे बैठक में घुसे आए. नमस्ते-समस्ते कुछ नहीं. सीधे काम की बात. ‘भाई साहब, आप ये ठीक नहीं कर रहे. हमारे यहां फिल्में कम हैं कि आप ईरानी-सीरानी के चक्कर में पड रहे हैं? आप अनसोशल हो रहे हैं, दुनिया से कट रहे हैं!’...
स्क्रीन में कुछ बेहूदा तेलुगु फिल्मों की समीक्षा देख रहा था. हाथ का अखबार एक ओर करके मुस्कराने लगा, ‘ये अच्छा है, मंटू मियां. तुम हिंदी फिल्मों की वकालत में हमें अनसोशल और दुनिया से कटा बताओ! कितनी सोशल और दुनिया से जुडी हुई हैं तुम्हारी हिंदी फिल्में? जस्ट मैरिड ज्यादा जुडी है या धूम टू जिसकी डीवीडी उठाकर तुमने खिडकी के बाहर फेंकने की धमकी दी थी?
मंटू समझ रहा था मैं उसे अपने तर्कों में फांस रहा हूं. तमककर कहा, ‘ठीक है, ठीक है, जैसे बूढे आप वैसा ये क्यारोस्तामी. देखकर लगता है कोई डायरेक्टर नहीं किसी सफाई कंपनी का इंजीनियर है!’ मैंने कहा, ‘उसमें क्या बुराई है. किसी उटपटांग सर्कस कंपनी के रिंग मास्टर की तुलना में इंजीनियर ज्यादा काम की चीज़ है. अपने को ज्यादा पसंद है.’ मंटू कुर्सी में बेचैन होने लगा, ‘आप समझते नहीं... ये ईरानी-मुसलमानी फिल्मों का हमें क्या करना है, भाई साब!’
‘अगर यह है तुम्हारी चिंता तो फिर तो तुम्हें सिर्फ और सिर्फ नेपाली फिल्में देखनी चाहिये. सैफ और शाहरुख की भी देखना बंद करो तुम्हारे संस्कार खराब होंगे,’ मेरे मुस्कराने से मंटू और चिढ रहा था. इस बात से खीझ रहा था कि वह बिना ढंग की तैयारी के इस बैठक तक चला आया था. मैंने बात आगे बढाई, ‘ईरानी फिल्में काटती नहीं हमें दुनिया से जोडती हैं, मंटू. दो-तीन फिल्में देख लो, फिर बात करना.’
मंटू चिढकर कुर्सी से उठ खडा हुआ, ‘आपसे कुछ भी कहना बेकार है!’ और तेजी से बाहर निकल गया. स्क्रीन उठाकर मैं वापस बेहूदा फिल्मों की बेहूदा समीक्षाओं में लौट गया. मंटू की मुझे चिंता नहीं थी क्योंकि जानता था वह शाम को फिर आयेगा, कैजुअली दो ईरानी फिल्में उठाकर ले जाएगा और बाद में जब पुछूंगा कैसी लगी तो सिर खुजलाते हुए सीधे जवाब देने से कतरायेगा. फिर अचानक कहेगा, ‘ठीक हैं, लेकिन वैसी कोई फाडू चीज़ नहीं कि आप इतनी हवा बना रहे थे. और वो इंजीनियर- क्यारोस्तामी, वो सही है, भाई साहब!’
(ऊपर: क्यारोस्तामी का लैंडस्केप, नीचे: एबीसी अफ्रीका की शुटिंग के दौरान युगांडा में बच्चों के बीच)
2 comments:
प्रमोद जी, क्या आप किसी ऐसी साइट के बारे में बता सकते हैं, जिस पर माजिक मजीदी और ईरानी फिल्मों के बारे में और अधिक जानकारी हासिल की जा सके।
बंधु, गूगल में आप नाम से बेसिक सर्च करें, हर तरह का नतीजा मिलेगा. फिर जो माफिक लगे आपको.
Post a Comment