ईरानी सिनेमा: दो
साठ का दशक नतीजों वाला साबित हुआ. दशक के शुरुआत में सालाना पच्चीस के एवरेज से बननेवाली फिल्मों की संख्या दशक के आखिर तक पैंसठ पर पहुंच चुकी थी. अलबत्ता इनमें ज्यादा फिल्में हल्के-फुल्के रोमांस, मेलोड्रामा व थ्रिलर के उन जानरों की थी जो व्यावसायिक सिनेमा की एक खास ईरानी (देसी चाशनी में थोडा हॉलीवुड, कुछ बॉलीवुड) ईजाद रहे. स्थानीय स्तर पर जिसकी ठीक-ठाक मात्रा में दर्शक तैयार हो गए थे. इस सिनेमा ने सत्तर के दशक में ईरान को मोहम्मद अली फरदीन जैसे स्टार दिये. 1979 में खोमैनी की इस्लामिक क्रांति ने देश में हल्के-फुल्के सिनेमाई मनोरंजन का न केवल बोरिया-बिस्तर बांध दिया, सिनेमा में क्या दिखाया जाएगा और क्या नहीं इसे लेकर विस्तार से नई नीतियां बनाकर लागू की. इस पर बाद में. पहले पहले की कुछ और खबर लेते चलें.
ईरानी सिनेमा के जिस पेचीदा और अनोखे रास्ते की हमने पिछली दफा चर्चा की थी उसकी पहला महत्वपूर्ण दस्तक थी फिल्म- 1962 में बनी घर काला है. कुष्ठ रोगियों पर बने ईरानी सिनेमा के इस लगभग प्रथम गंभीर प्रयास के दो अनोखे पहलू थे. यही नहीं कि फिल्म डॉक्यूमेंट्री थी और इसका रचयिता फोरुग फारोगज़ाद एक शायर था, बल्कि यह कि इस सीरियस शुरुआत का आगाज़ एक पुरुष नहीं स्त्री के हाथों हुआ था. फारोगज़ाद एक महिला थी और इससे पहले दुनिया के किसी और मुल्क में यह नहीं हुआ था कि रचनात्मकता का पहला बिगुल किसी स्त्री ने बजाया हो.
इस ऐतिहासिक व्यंग्य की इतने में ही परिणति नहीं हुई. कहानी का अगला पेंच यह था कि घर काला है अपने बनने के बाद घर में ही बनी रही और पश्चिमी गंभीर सिने दर्शकों की नज़रों तक वह नहीं ही पहुंची. आनेवाले आठ वर्ष अभी और ईरानी सिनेमा को अंतर्राष्ट्रीय गुमनामी में गुज़ारना था. अगला झटका एक अट्ठाईस वर्षीय दारियस मेहरजुइ की फिल्म के साथ आया. सस्ते में बनी काली-सफेद और बिना सबटाईटलों वाली दारियस की फिल्म स्मगल होकर वेनिस के फिल्म महोत्सव तक पहुंच गई. गाव (गाय) नाम की यह फिल्म गांव के एक आदमी की अपने गाय प्यार, ओब्सेशन की कवितानुमा कथा कहती है जिसकी दुनिया में गाय ही आय का इकलौता स्त्रोत है. फिल्म ने न केवल वेनिस महोत्सव में ईनाम जीता, ईरानी सिनेमा के लिए अंतर्राष्ट्रीय दरवाज़े खोले और घरेलू मोर्चे पर लोक कथात्मक, डॉक्यूमेंट्री शैली के ऐसे सिनेमा को हवा दी जिसका प्रभाव आनेवाली एक समूची पीढी के सिनेमा में देखा जानेवाला था.
(जारी...)
ऊपर फोरुग फारोगज़ाद और नीचे फिल्म गाय का एक दृश्य)
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