2/14/2007

कांटो का हार वाला स्‍टेटमेंट एक्‍चुअली गलत है

साहिर साहब, गुरु दत्‍त बाबू, सामने आकर क्‍लैरिफाई कीजिये!


जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्‍यार को प्‍यार मिला. हमने तो जब कलियां मांगी कांटों का हार मिला. यह सही नहीं है. अनुराग कश्‍यप ने ब्‍लैक फ्राइडे में इतना खुलकर इशारा कर दिया है, और रवीश कुमार के सौजन्‍य से सारे लोग अब जान गये हैं, बुरी तरह चौंकन्‍ना हैं मगर जिन्‍हें लेना था उन्‍होंने नोटिस नहीं लिया है. पता नहीं क्‍या सोचकर साहिर ने ये पंक्तियां लिखी थीं. उन्‍हें हार तो बहुत मिले होंगे मगर मुझे शक है वो कांटों के थे. यह उनका रुतबा और दबदबा ही था कि वह अपने समय के संगीतकारों को पेटी-मास्‍टर और हारमोनियम वाला जैसी गालियों से याद करते थे (माफ़ कीजियेगा, सचिन दा). सलीम जावेद की जोडी ने तब तक बंबई पहुंचकर सिप्‍पी साहब के यहां इन- हाऊस राईटरों वाली नौकरी पकडी नहीं थी, मगर साहिर साहब का रेट चोपडा बंधुओं के प्रोडक्‍शन हाऊस में ऊंचा हुआ करता था. फिर अमृता प्रीतम भी साहिर साहब पर लट्टू थीं. उनके चक्‍कर में सारी जिंदगी बिचारी सिंगल बैठी रहीं. और फिर भी साहिर साहब कांटों का हार मिलने का रोना रो रहे थे.

इस इंडस्‍ट्री के साथ यही दिक्‍कत है, लोग कितना भी पा लें, उनकी भूख खत्‍म नहीं होती. और ताजुब्‍ब होता है गुरु दत्‍त इस तरह की सोच प्रोमोट कर रहे थे! गीता दत्‍त जैसी सुरीली आवाज़ को लाकर घर में बिठा लिया, चौदहवीं का चांद उठाकर उड लिये, फिर भी कागज़ के फूल और प्‍यासा की हाय-हाय कर रहे थे. ठीक है कि आपके प्‍यासा के विजय को ज़रा इधर-उधर कांटों की चोट लग गई होगी (माला सिन्‍हा जैसियों से और आप उम्‍मीद क्‍या कर रहे थे? मगर बाजू में वहीदा तो आपके पीछे जान दे रही थी, न? फिर? वहीदाओं और मधुबालाओं की छतरियों के नीचे आपके लिए भंवरा बडा नादान है, आज पिया मोहे अंग लगा ले वाली मस्तियां गाई जा रही थीं और साहब, आप फिर भी कंप्‍लेन किये जाये रहे हैं? अरे, आप ही क्‍यों, आपका खडा किया विजय तो आज तक काट रहा है, और जो और जितना वह काट रहा है उसमें कुछ भी ऐसा नहीं जिसे आप कांटों का हार कहकर धीरे से आगे सरका दें!

मानसिक अव्‍यवस्‍था ही वजह रही होगी जिसने आपको पटखनी दिलवाकर दारु-सारु की लत दे दी. वर्ना हुज़ूर, आप तो बाजी के बाद से ही रंग में थे. गीता बाली और शकीला का जैसा इस्‍तेमाल आपने करवाया, वह और किस दूसरे माई के लाल डाइरेक्‍टर के बूते की बात थी? और हिंदी सिनेमा में जॉनी वॉकर आप लेकर आये. वहीदा को आपने इंट्रोड्यूस किया. राज खोसला जैसा निर्देशक आपका असिसटेंट था. हिंदी सिनेमा को आपने इतने कमाल के गाने दिये, और जनाब, कहते हैं कांटों का हार मिला! सच्‍ची, गुरु भाई, आपने यह अच्‍छी परंपरा नहीं डाली. कल को आपकी देखादेखी विजय बाबू भी अखबारों और खबरी चैनलों पर रोना शुरु कर देंगे कि उन्‍हें एक के बाद एक कांटों का हार मिल रहा है! यह आपने क्‍यों किया गुरु दत्‍त बाबू? साहिर साहब, सुन रहे हैं?... कोई जवाब नहीं दे रहा. हिंदुस्‍तान के तरक्‍की पसंदों के साथ यही दिक्‍कत है. मौके की जो सही समीक्षा होनी चाहिये उसकी बजाय कुछ और ही राग अलापते रहते हैं! या फिर यही बात होगी कि गुरु दत्‍त की आड लेकर साहिर साब हम सबों को वही बना रहे थे जिसका रवीश ने जिक्र किया है.

1 comment:

Anonymous said...

आपका कहना बिल्‍कुल सही है। ‘कांटों का हार’ वाला स्‍टेटमेंट दरअसल गलत ही है। इससे एक किस्‍म के निराशावाद की बू आती है। और सच तो ये है कि तमाम दुख और टूटन के बावजूद, तकलीफों की भयंकरतम कारा के बावजूद, जीवन हर पल आशा है, उम्‍मीद है, संभावना है।