2/15/2007

शिल्‍पा

जिंदगी भी क्‍या फ़रेब है शिल्‍पा
इसे तुमसे बेहतर कौन जानता है
और अब इसी फ़रेब को तुम
हक़ीकत और अपनी जिंदगी
बना रही हो. खुद नाच रही हो अपने पीछे
हम सबको नचा रही हो.

बाघ की खाल की पोशाक और घुटनों
तक के बूटों में तुम बिल्लियों वाली
बाज़ीगरी करती सामने आई थीं. सबसे छिपाकर
अरविंद ने तुम्‍हें डेस्‍कटॉप पर चढाया था मगर
अब तो अरविंद एक बच्‍चे का बाप है और
पिछले तीन वर्षों में उसने
एक हिंदी फिल्‍म नहीं देखी.

कितनी बार तुमने उम्‍मीदें बांधी और
कितनी बार सपनों को टूटता देखा
तुम तो वह फिल्‍म हो जो कभी
ठीक से शुरु भी न हुई. और अब तो
सिर से इतना पानी गुज़र चुका है अक्षय भी
पिता बन चुका है. फ़रेब, शादी करके फंस गये
यार, दस बस अब बहुत हुआ शिल्‍पा.

हिंदी फिल्‍मों की हिरोईन की उम्र यूं भी
बहुत छोटी होती है. वह ज्‍यादा से ज्‍यादा
टीना मुनीम और नीतू सिंह होती है. कैमरे के आगे
हाथ हिलाती, दांत दिखाती अब और मत दिखो शिल्‍पा
फिर टूटेगा सपना बडी चोट लगेगी
इतने पैसे मिले हैं क्‍या कम है
तुम मंदिरा बेदी नहीं फिर मंदिरा होने का स्‍वांग मत करो
वापस लौट आओ, शेट्टी समाज को बताओ
इससे पहले कि बहुत देर हो जाये वहीं अपनी
पहचान बनाओ. बडी बेरहम दुनिया
है ये. देखा ही तुमने नैय्यर साहब का जाना
सबके ही हित में होगा तुम हिंदी फिल्‍में भूल जाओ.

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