इसी को कहते होंगे डेस्टिनी, चीज़ों को कहां-कहां पहुंचाती है. या नहीं पहुंचाती. कि उदासियों के करीने से सजाये कंपोशिज़ंस और छोटे शहर के लंबे जारमुशी ट्रैक शॉट्स ‘लेक ताहो’ को बर्लिन पहुंचाते हैं, मगर अदरवाइस मैक्सिको के बाहर की बहुत यात्रायें नहीं करवाते. उसकी जगह सिंगापुर की तमिलभाषी, अपेक्षाकृत स्थूल, ‘माई मैजिक’ के दुश्कर जीवन की नाटकीयता सीधे कान के कंपिटिशन में जगह बनाती है. एक दूसरी, पुरानी फ़िल्म, जो यूं ही अनजाने हत्थे चढ़ी और देखते हुए मन अघाया वह थी, सन्र ’78 की बनी इटली के दमियानो दमियानी की ‘घुटने पर आदमी’. मैं दमियानो की दुनिया से बहुत वाकिफ नहीं तो मेरे लिए फ़िल्म कुछ आंख खोलनेवाली थी. एक आम आदमी के नज़रिये से पलेर्मो के माफिया-जाल-जंजाल की धीमे-धीमे वहशतनाक परत खोलती, लेकिन कोई-सा भी ऑवियस ड्रामा नहीं, कपोला का रोमांस, या ब्रायन द'पाल्मा का ‘स्कारफेस’ या ‘द अनटचेबल्स’ की प्रकट हिंसा नहीं, बस धीमे-धीमे गरम शीशा चूता रहता है और स्थान, समाज-विशेष में आदमी की नियति का एक सघन निबंध बुनता चलता है. आदमी की नियति से देखे हुए एक हालिया अमरीकी फ़िल्म की भी याद. फ़िल्म है ‘अप इन द एयर’, सुआव और अटरली सिनिकल क्लूनी, मंदी के दौर में कंपनियों के मालिकों वाला काम कर रहे हैं, मतलब शहर-शहर घूम-घूमकर लोगों को ‘फायर’ कर रहे हैं, चेहरे पर शराफ़त की हंसी चढ़ाये, निस्संगता के बर्बरगीत की एक नयी पैकेजिंग किये, समझदारी से लिखी, कही फ़िल्म किसी भी तरह की अतिशयता से बचती है और फ़िल्म के आखिर क्रेडिट रोल्स में देखकर अच्छा लगता है कि 52 वर्षीय काम से बहरियाये केविन रेनिक ने दरअसल टाइटल गाने की लिखाई और धुन की बनाई की है. हाल की दो और फ़िल्मे जो हौले-हौले खुलती किताब बनती रहीं, वह थीं सॉलिडली गठी हुई आर्जेंटिनियन थ्रिलर ‘द सिक्रेट इन देयर आईस’ और कुछ लगभग उसी अनुपात में, उतनी ही अनगढ़, मगर अपने ठहराव में बांधनेवाली, स्वीडन की ‘फाल्कनबर्ग फेयरवेल’.
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3/03/2010
हालिया कुछ दिखी फ़िल्में..
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7/08/2007
एलविरा मादिगन..
डायरेक्टर: बो वाइडरबर्ग
अवधि: 90 मिनट
साल: 1967
रेटिंग: ***
एक निहायत ही खूबसूरत फ़िल्म.. स्कैन्डिनेवियन समर के जादुई उजाले में फ़िल्माई हुई यह फ़िल्म दरअसल 1889 की एक सच्ची घटना पर आधारित है.. अपने सौतेले पिता के सर्कस में रस्सी पर चलने वाली लड़की का नाम था एलविरा मादिगन.. जिसे प्यार हो जाता है सिक्सटेन स्पारै नाम के एक आर्मी अफ़सर से..
फ़ौज से भागा हुआ दो बच्चों का बाप सिक्सटेन और एलविरा एक मास तक यहाँ वहाँ घूमते हैं.. जंगल.. गाँव कस्बे.. अपने प्यार को पूरी शिद्द्त से जीते.. पैसों की कमी की परवाह न करते.. और आखिर में एक ऐसी नौबत को पहुँचते जब उन्हे पेट भरने के लिए बीन बीन कर फल फूल खाने पड़े.. एक दूसरे को छोड़ कर समाज में लौट कर उसकी दी हुई सजाओं को भोगना.. इसे स्वीकार करने में असहाय ये दो प्रेमी.. आखिर में अपनी तरह का जीवन ना जी पाने की असहायता में खुद्कुशी कर लेते हैं.. सिक्सटेन, एलविरा को गोली मार के खुद भी मर जाता है.. उस वक्त सिक्सटेन 35 बरस का और अलविरा 21 बरस की थी.. डेनमार्क में मौजूद उनकी कब्र पर प्रेमियों का मेला आज भी लगता है..
कहानी जितनी दुखद है.. इस फ़िल्म का सिनेमैटिक अनुभव उतना नहीं.. डेढ़ घंटे की अवधि में अधिकतर समय आप दो प्रेमियों के प्रेम के मुक्त आकाश को देखते हैं.. खुली खूबसूरत आउटडोर सेटिंग्स में.. महसूस करते हैं उनके प्यार की गरमाहट को वार्म पेस्टल शेड्स में.. और मोज़ार्ट और अन्य मास्टर्स के संगीत और उनकी निश्छल खिलखिलाहटों में.. एक यादगार मुहब्बत का खूबसूरत सिनेमाई अनुभव..
इस फ़िल्म में एलविरा की भूमिका निभाने के लिए पिआ देगेरमार्क को कान फ़िल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार दिया गया..
-अभय तिवारी
अवधि: 90 मिनट
साल: 1967
रेटिंग: ***

फ़ौज से भागा हुआ दो बच्चों का बाप सिक्सटेन और एलविरा एक मास तक यहाँ वहाँ घूमते हैं.. जंगल.. गाँव कस्बे.. अपने प्यार को पूरी शिद्द्त से जीते.. पैसों की कमी की परवाह न करते.. और आखिर में एक ऐसी नौबत को पहुँचते जब उन्हे पेट भरने के लिए बीन बीन कर फल फूल खाने पड़े.. एक दूसरे को छोड़ कर समाज में लौट कर उसकी दी हुई सजाओं को भोगना.. इसे स्वीकार करने में असहाय ये दो प्रेमी.. आखिर में अपनी तरह का जीवन ना जी पाने की असहायता में खुद्कुशी कर लेते हैं.. सिक्सटेन, एलविरा को गोली मार के खुद भी मर जाता है.. उस वक्त सिक्सटेन 35 बरस का और अलविरा 21 बरस की थी.. डेनमार्क में मौजूद उनकी कब्र पर प्रेमियों का मेला आज भी लगता है..
कहानी जितनी दुखद है.. इस फ़िल्म का सिनेमैटिक अनुभव उतना नहीं.. डेढ़ घंटे की अवधि में अधिकतर समय आप दो प्रेमियों के प्रेम के मुक्त आकाश को देखते हैं.. खुली खूबसूरत आउटडोर सेटिंग्स में.. महसूस करते हैं उनके प्यार की गरमाहट को वार्म पेस्टल शेड्स में.. और मोज़ार्ट और अन्य मास्टर्स के संगीत और उनकी निश्छल खिलखिलाहटों में.. एक यादगार मुहब्बत का खूबसूरत सिनेमाई अनुभव..
इस फ़िल्म में एलविरा की भूमिका निभाने के लिए पिआ देगेरमार्क को कान फ़िल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार दिया गया..
-अभय तिवारी
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