गोपालदास नीरज पर फ़िल्म डिविज़न ने आधे घंटे की एक डॉक्यूमेंट्री चढ़ाई है।
जैसा आमतौर पर समाज कवियों को बरतकर निकल लेता है, लद्धड़-सा
ही काम है, मगर फ़ुरसत लगे तो कभी एक झलक ले लीजिए। कवि के बचपन
की ग़रीबी और इटावा का पास-पड़ोस दिखेगा। कवि ख़ुद दोस्तों के साथ उम्र की थकान ओढ़े
ताश की एक बाजी खेलते दिखेंगे। अपने ख़ास शब्दों के चयन और रवानी की टेकनीक पर कुछ
बोलते-बतियाते भी..
No comments:
Post a Comment