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6/18/2008

एबीसी अफ्रीका

अब्‍बास क्‍यारोस्‍तामी की डॉक्‍यूमेंट्री ‘एबीसी अफ्रीका’ नयी फ़ि‍ल्‍म नहीं है (2001 में बनी थी, उसके बाद से वह सात और फ़ि‍ल्‍में सिरज चुके हैं, कोई फ़ि‍ल्‍मकार इससे ज़्यादा प्रॉलिफिक और क्‍या होगा?).. मगर एबीसी अफ्रीका की खासियत इसका डिजिटल फॉरमेट (मिनी डीवी) में शूट किया होना है, तो इस लिहाज़ से क्‍यारोस्‍तामी के स्‍तर के निर्देशक की हम यहां दूसरे किस्‍म की सक्रियता को देखने का सुख पाते हैं..

यूगांडा के एआईडीएस पी‍ड़ि‍त परिजनों के अनाथ बच्‍चों की मदद करनेवाली अंतर्राष्‍ट्रीय एजेंसी के सहयोग से बनी फ़ि‍ल्‍म अभागे बच्‍चों की इसी दुनिया में घूमती है, लिटरली; कुछ ऐसा, इतना ही सरल फ़ि‍ल्‍म का ढांचा है: बीच-बीच में पीछे छूटती सड़कों का भव्‍य, अनूठा लैंडस्‍केप है, और फिर नाचते, ठुमकते, कैमरे के आगे आ-आकर मुंह बिराते बच्‍चों की हुड़दंग है.. ओर-छोर तक फैली गरीबी, असहाय सामाजिक लोक व उसमें असहाय कभी भी आते रहनेवाली मृत्‍यु का अनाटकीय डॉक्‍यमेंटेशन है.

एबीसी अफ्रीका व उसके प्रति क्‍यारोस्‍तामी के नज़रिये के बारे में दिलचस्‍पी रखनेवाले तत्‍संबंधी सामग्री यहां और यहां पढ़ सकते हैं.