जिस तरह अंगूठे और तर्जनी के बीच बच्चे का गाल दबा के मां पहली दफा स्कूल जा रहे लाडले के तेल चुपड़े केश संवारती है, फिर गर्व से आश्वस्त होकर उसे बाहर पठाती है; हम भी कुछ उसी अदा में कल देर रात अपने ब्लॉग के बैनर से छेड़छाड़ करते रहे. और बेचारे बच्चे के साथ हुई हिंसा वाले अंदाज़ में ही फेल्लिनी की व फेल्लिनी संबंधी दस तस्वीरों के जगर-मगर को ब्लॉग के माथे चिपका कर जब आत्मा से ‘ये क्या कर डाला’ का धुआं उठने लगा- तो थक-हार मानकर आश्वस्त हो लिये, और इसके पहले कि उसे और लबेरते, सेव करके बाहरी संसार में पठा दिया!
गुगल ने बैनर के साथ फोटो नत्थी करने का जो नया ऑप्शन दे दिया है, तो उस ऑप्शन को टटोलने के बाद अब हम उसकी तबतक चीरफाड़ करेंगे जबतक फोटोशॉप और हमारी आंखें फट कर बाहर न आ जायें! फेल्लिनी कब्र से कराहते हुए बाहर न निकल आयें- कि भैया, बहुत करम कर लिया, अब हमारी जान बख्शो! फेल्लिनी की फिल्म होती तो शायद ऐसा कुछ सचमुच घट भी जाता, मगर जानता हूं वास्तविक लोक में फेल्लिनी की जान का जो होना था 1993 में हो चुका है, वह जहां हैं वहीं पड़े रहेंगे और मुझको तबतक चैन नहीं पड़ेगा जब तक कंप्यूटर के फिल्मी फोल्डर को आमूल-चूल एक्शॉस्ट न कर लूं! खलिहागिरी में ‘क्रियेटिव एंगेजमेंट’ का बहाना और मसाला दोनों हो गया, और कम स कम सामग्री के स्तर पर न सही (जैसाकि पीछे हफ्ते भर से हो रहा है), बैनर के स्तर पर सिलेमा में आपको नवीनता मिलेगी, इसका वादा है!
आज वर्षों बाद तिबारा एरमान्नो ओल्मी की ‘द ट्री ऑफ वुडेन क्लॉग्स’ (अंग्रेजी में शीर्षक) देखी. लगभग तीस वर्ष पहले बनाई बहुत ही विशिष्ट फिल्म है. अनुभव की महक से अभी तक गमक रहा हूं. आनेवाले दिनों में जल्दी ही उसकी चर्चा पर लौटूंगा. तबतक आप फेल्लिनी का बैनर देखकर चकित रहिये, और चकित रहते-रहते आजिज आने लगें तो थक कर हमारी तारीफ़ भी कर डालिये.
3 comments:
मस्त है..
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थककर क्यूं प्रमोद जी, हम तो खुशी-खुशी आपकी तारीफ करेंगे। बढि़या बैनर बनाया है आपने। बनाइए, जरूर बनाइए लेकिन फोटोशॉप और फेलिनि के पीछे हाथ धोकर तो मत पडि़ए। इससे तो अच्छा कि आप हाथ धोकर सिलेमा में लिखने के पीछे पड़ जाइए। ब्लॉगवासियों का भी कल्याण होगा।
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