अभी अभी यह तथ्य प्रकाश में आया है कि मीडिया में चंद फोड़क व फाड़क तत्व पापी जी की पवित्र रचना को साहिर(?) का लिखा बताकर कविता (इलाहाबाद की मुट्ठीगंज वाली नहीं हिंदी साहित्य वाली) को ही नहीं जनता को भी गलतफ़हमी का शिकार बना रहे हैं. क्या जनता पहले से ही पर्याप्त गलतफ़हमी नहीं पाले हुए है? कि आप उसे गलतफ़हमियों का एक्स्ट्रा बैगेज दे रहे हो? आप मीडिया होकर क्यों मंडी (हिमाचल वाली नहीं बाज़ारवाली) की तरह बिहेव कर रहे हो? इस देश में जिम्मेदारी का भाव क्या जवाहरलाल के उठने के साथ उठ गया है? हद है मीडिया वालो!ख़ैर, जनता-जनार्दन, अपने अशिक्षित, अर्द्धशिक्षित कानों से आप पापी जी की महान रचना स्वयं सुनें और तय करें क्यों भला साहिर जैसा सतही कवि ऐसे दिलफ़रेब रचना का क्रेडिट (आईसीसीआई बैंक का नहीं काव्य रचने का क्रेडिट) हड़पना चाहता है?
तो, खिदमत में पेश है, आशा पारेख महकती हुई, जितेंद्र लहकते हुए और पवित्र जी पापी जी ‘समाज को बदल डालो’ वाली तर्ज़ पर सुलगते हुए. दिल को तोड़कर मरोड़ देनेवाली इस युग प्रवर्तनकारी रचना का शीर्षक है ‘नया रास्ता’. पेश है:
पोंछ कर अश्क अपनी आंखों सेअय हय, अय हय, क्या बात है! बहुत खूब, पापी साहब, वन्स मोर, जनाब!..
मुस्कराओ तो कोई बात बने
सिर झुकाने से कुछ नहीं होगा
सिर उठाओ तो कोई बात बने
जिंदगी भीख में नहीं मिलती
जिंदगी बढ़ के छीनी जाती है
अपना हक़ संगदिल ज़माने से
छीन पाओ तो कोई बात बने
रंग और भेद जात और मज़हब
जो भी हो आदमी से कमतर है
इस हक़ीक़त को तुम भी मेरी तरह
मान जाओ तो कोई बात बने
नफ़रतों के जहां में हमको
प्यार की बस्तियां बसानी है
दूर रहना कोई कमाल नहीं
पास आओ तो कोई बात बने
पोंछ कर अश्क एटसेट्रा एटसेट्रा..(1)
पापी दा ने कमाल की चीज़ ही नहीं लिख मारी थी, बेकमाल जितेंद्र और बेसिर पैर की आशा पारेख के मुंह में सोशल मैसेज तक फिट कर दिया था! फिर भी मीडिया गुमराह हो रही है तो वह हो नहीं रही, आपको-हमको गुमराह कर रही है! क्या “नफ़रतों के जहां में हमको प्यार की बस्तियां बसानी हैं” जैसी पंक्तियां लिखकर पापी जी सीधे-सीधे नफ़रतों का मोहल्ला बनाने वालों पर अटैक करते हुए उन्हें प्यार की बस्तियां बसाने के राह पर लाने की सामाजिक कोशिश नहीं कर रहे? आपको दिख नहीं रहा? क्या आप अंधे हैं?
हद है, यार!
ऊपर फोटो: आशा पारेख नहीं डिंपल के साथ जितेंद्र एक अप्रगतिशील नृत्य मुद्रा में. संदेश वही: समाज को बदल डालो.
(1). मौलिक रचनाकार: कविवर श्री पवित्र जी पापी जी, अप्रगतिशील ग्रंथमाला, भाग दो खंड तीन के 'नये रास्ते' में संकलित
2 comments:
पापी जी की पवित्र रचना को आपने खोज कर हम जैसो को धन्य कर दिया.अब शायद हमारी ज़िन्दगी से अन्धेरा छ्ट जाएगा, चारो ओर उजाला ही उजाला होगा,नफ़्ररत की दीवार भी गिर जाएगी मगर मोहल्लो और गलियो मे जो लोग रह रहे है,उनको पापी जी के बारे मे पता है?
नफ़रतों के जहां में हमको
प्यार की बस्तियां बसानी है
दूर रहना कोई कमाल नहीं
पास आओ तो कोई बात बने
पोंछ कर अश्क .......ये शायद मेरी लाईन है, चलिये अभी तक आपको याद है... सबको बताईयेगा....ज़रुर
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