साल: 2006
भाषा: अंग्रेज़ी
डायरेक्टर: ब्रायन द पाल्मा
लेखक: जोश फ्रायडमान, जेम्स एलरॉय
रेटिंग: **
बेबात की सत्रह अदायें हिंदी फ़िल्मों का ही दुर्गुण हो, ऐसा नहीं.. हॉलीवुड में ये नौटंकियां ज़मीन-आसमान एक करने लगती हैं, इसलिए भी कि उनके पास फूंकने को ज़्यादा पैसा है.. लगातार मोबाइल कैमरे से मिज़ानसेन रचने में ‘स्कारफेस’, ‘द अनटचेबल्स’, ‘मिशन इम्पॉसिबल’ जैसी बड़ी व सफल फ़िल्मों के निर्देशक ब्रायन द पाल्मा विशेष आनन्द लेते हैं.. बहुत बार सीन बड़ा महत्वपूर्ण होने जा रहा है इसका भरम भी बनता है.. मगर फिर धीमे-धीमे आप समझने लगते हैं ये अदायें हैं.. और अदायें सिर्फ़ अदायें होती हैं..
2006 में बनी ‘द ब्लैक डाहलिया’ चालीस के दशक में एलिज़ाबेथ शॉर्ट नामकी एक अभिनेत्री के मर्डर की सच्ची हटना पर लिखे जेम्स एलरॉय के उपन्यास का फ़िल्मी रूपान्तर है.. थ्रिलर.. ब्रायन द पाल्मा का हमेशा का पसंदीदा जानर.. विल्मोस सिगमोंद की अच्छी सिनेमाटॉग्राफ़ी है.. बीच-बीच में अच्छे चुटीले वाक्य सुनने को मिलते हैं.. लगता है मज़ेदार पॉप फ़िलॉसफ़ी की पंक्तियां बरसीं.. जोश हार्टनेट और स्कारलेट जोहानसन का अभिनय भी बीच-बीच में आपको लपेटता है.. मगर फिर आप थकने लगते हैं.. और राह तकते हैं कि ठीक है, भाई, अब फ़िल्म खत्म हो.. मगर होती नहीं.. प्याज़ की परतों की तरह, और ‘देखो, दुनिया में कितना गंध है!’ वाले अंदाज़ में एक के बाद एक जाने कैसे-कैसे उलझे भेद खुलते रहते हैं.. आपको बस यही समझ आता है देखने में अच्छी, मगर अंतत: सुगधिंत मूर्खता है.. हॉलीवुडियन एक्स्ट्रावैगांज़ा है, विशुद्ध इंडलजेंस है.
2 comments:
What an unusual but beautiful name it holds ! "Black Dahlia ! "
सही समीक्षा..
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