डायरेक्टर: बो वाइडरबर्ग
अवधि: 90 मिनट
साल: 1967
रेटिंग: ***
एक निहायत ही खूबसूरत फ़िल्म.. स्कैन्डिनेवियन समर के जादुई उजाले में फ़िल्माई हुई यह फ़िल्म दरअसल 1889 की एक सच्ची घटना पर आधारित है.. अपने सौतेले पिता के सर्कस में रस्सी पर चलने वाली लड़की का नाम था एलविरा मादिगन.. जिसे प्यार हो जाता है सिक्सटेन स्पारै नाम के एक आर्मी अफ़सर से..
फ़ौज से भागा हुआ दो बच्चों का बाप सिक्सटेन और एलविरा एक मास तक यहाँ वहाँ घूमते हैं.. जंगल.. गाँव कस्बे.. अपने प्यार को पूरी शिद्द्त से जीते.. पैसों की कमी की परवाह न करते.. और आखिर में एक ऐसी नौबत को पहुँचते जब उन्हे पेट भरने के लिए बीन बीन कर फल फूल खाने पड़े.. एक दूसरे को छोड़ कर समाज में लौट कर उसकी दी हुई सजाओं को भोगना.. इसे स्वीकार करने में असहाय ये दो प्रेमी.. आखिर में अपनी तरह का जीवन ना जी पाने की असहायता में खुद्कुशी कर लेते हैं.. सिक्सटेन, एलविरा को गोली मार के खुद भी मर जाता है.. उस वक्त सिक्सटेन 35 बरस का और अलविरा 21 बरस की थी.. डेनमार्क में मौजूद उनकी कब्र पर प्रेमियों का मेला आज भी लगता है..
कहानी जितनी दुखद है.. इस फ़िल्म का सिनेमैटिक अनुभव उतना नहीं.. डेढ़ घंटे की अवधि में अधिकतर समय आप दो प्रेमियों के प्रेम के मुक्त आकाश को देखते हैं.. खुली खूबसूरत आउटडोर सेटिंग्स में.. महसूस करते हैं उनके प्यार की गरमाहट को वार्म पेस्टल शेड्स में.. और मोज़ार्ट और अन्य मास्टर्स के संगीत और उनकी निश्छल खिलखिलाहटों में.. एक यादगार मुहब्बत का खूबसूरत सिनेमाई अनुभव..
इस फ़िल्म में एलविरा की भूमिका निभाने के लिए पिआ देगेरमार्क को कान फ़िल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार दिया गया..
-अभय तिवारी
5 comments:
देखनी पड़ेगी, पत्नीश्री को ऐसी फ़िल्में पसंद हैं यह और भी अच्छी बात है.
संक्षिप्त एवं सारगर्भित फिल्मानुरुप समीक्षा. धन्यवाद.
हमारे देखे बिना फ़िल्म लौटाओगे तो ज़िन्दा नहीं पाए जाओगे!..
अच्छा विश्लेषण हुआ है यह फिल्म तो देखनी पड़ेगी…
मगर आप कब दिखा रहे हो…।
यह ब्लॉग आज पहली बार देखा और खूब देखा लेकिन अलविरा मादिगन फिल्म ने गहरी उत्सुकता पैदा की है। क्या आप बता पाएंगे कि इसे कैसे देखा जा सकता है। डीवीडी दो बहुत महंगी होगी। कुछ अच्छी समीक्षाएं पढ़वाने के लिए धन्यवाद।
रवींद्र व्यास, इंदौर
Post a Comment