बर्फ़ नहायी पसलियां बजाती ठंड के निस्सीम सफेद मैदान. जिसमें चौंका नज़र फेरता, और फिर उस विराटता में ठंड और जीवन से कटा-लुटा आदमी, कहीं उम्मीद की आंच को ज़रा जगह मिले के ख़्याल में घर के इंटीरियर के कोने, किसी कुर्सी, सोफा, काउच में अपने को बचाता, छिपाता चलता होगा. मगर जोड़ कंपकंपाती ठंड से भागने को कोई जगह मिलती, बनती न होगी. या जीवन से.
तुर्की के अनातोलिया के आदम ज़माने के पुरातनपने में नहायी देहाती दुनिया का यह एक ज़रा-सा छोटा टुकड़ा है. पचीसेक वर्ष अभिनय और नाटकों में गुजारने के बाद ऐदीन (कहानी का मुख्य किरदार) अपने पिता के पीछे छूटी विरासत संभालने के अब वास्तविक रोल में है. मगर संसार में नाम कमाने व पैर जमाने के लिहाज़ से जैसे थियेटर उसके बहुत काम का साबित नहीं हुआ था, पथरीले पुरातन बीहड़ में जीवन पर नियंत्रण की भूमिका में भी वह रहते-रहते उखड़-उखड़ सा जा रहा है.
पहाड़ियों में खुदा पुरानी ज़मींदारी का मकान अब विदेशी टुरिस्टों के लिए एक होटल के बतौर काम लाया जा रहा है. मकाननुमा यह होटल, और अपनी स्टडी के कवच में लैपटाप पर तुर्की थियेटर पर एक किताब लिखने की तैयारी, यही ऐदीन का खुद को तसल्ली और भुलावों में बझाये रखने का संसार है. आसपास कुछ और किरदार हैं, अपने से उम्र में काफी छोटी एक खूबसूरत, जीवन में अपना रोल खोजती जवान बीवी है, शौहर से तलाक़ लेकर अब अपने फ़ैसले पर फिक्रमंद होती पिता की पुरानी दुनिया में शरणागत बहन है, होटल में टिके दो सफ़री हैं, एक दोस्त और किराया अदा कर सकने की मुश्किलों में फंसा एक झमेलेदार किरायेदार परिवार है, परिवार पीछे छोड़कर अजनबी ठिकाने पर मास्टरी की नौकरी बजा रहा एक एक नौजवान है, ऐदीन का नौकर और गिरफ़्त में छटपटाता एक जंगली घोड़ा है; और बर्फ़ में नहायी पहाड़ियों और सन्नाते सूनेपन में सैरे, और इन सबके बीच आठ या नौ लम्बे-लम्बे गुफ़्तगू, इन्हीं के बीच एक डेंस सिनेमाटॉग्राफ़ी की नोक पर नूरी चेलान की लगभग सवा तीन घंटे की यह फ़िल्म, आह, क्या जानदार तरीके से सधी रहती है.
बस ज़रा-जरा से सवाल, और उनके गिर्द उलझे गुफ्तगू.. सबके अपने-अपने सवाल हैं, अपने में उलझे सामनेवाले के मुंह में उसका खुद का ज़हर है, किसी और के सवालों को सुनने और विचारकर जवाब बुनने का धीरज नहीं. सवाल जाड़े के तीरों के मानिंद मोटे कालीनों व आंच के नारंगीपने में इस दीवार से उस दीवार तक डोलते फिरते हैं, जवाब कभी आता भी है तो मन के हारेपने के नक्शे की शक्ल में.
सिनेमा के लिए खुशी की बात है कि उसके पास अभी भी नूरी चेलान की जाड़ों की नींद का ऐसा नशीला रीयलिस्टिक संसार है.
4 comments:
आज ही अापके ब्लॉग से रूबरू हुआ... अब तो अाना जाना लगा रहेगा.... धन्यवाद, इस जानकारी से भरे ब्लॉग के लिए....
सिनेमा के बारे में लिख रहे है तो एक बार आँखों देखी भी देख आये
http://puraneebastee.blogspot.in/2015/02/Ankhon-Dekhi.html
हिन्दी में अब तक चेलान पर कउछ पढ्ने को ना मिला था सो पढ कर चेलान कुछ और अपने से लग ने लगे
हिन्दी में चेलान पे कुछ प् ढ ने का अनुभव अद्भूत है
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