1/22/2011

पूंजीवाद: एक प्रेमकथा

माईकेल मूर की 2009 में बनाई डॉक्यूमेंटरी, कैपिटलिज़्म अ लव स्टोरी. 2007 से 2010 के बीच अमरीका की अर्थिक मन्दी, वित्तीय संकट और पूँजीवाद के सड़ांध की विश्लेषणात्मक टिप्पणी दिखाता ये फिल्म उद्वेलित करता है.

हमारी यह समझ कि जिन विकसित देशों में शिक्षा और संपदा एक मोटे तरीके से लगभग अंतिम व्यक्ति तक- पूरे तौर पर नहीं भी लेकिन बुनियादी ज़रूरातों की हद तक कम से कम- पहुँच पा रही हो (शायद उन्हीं वजहों से वहां विकास संभव हुआ होगा ऐसा सोचना बेवकूफी नहीं ), उन समाजों में व्यक्तिगत लोभ उस पतनशील नीचाई तक नहीं पहुँचेगा जहाँ समाजिक सरंचना के बुनियादी तत्व खतरे में पड़ें. माईकेल मूर इस भोली समझ को झटके से तोड़ते हैं. जुवेनल चाईल्डकेयर के भ्रष्टाचारी मसले हों या फिर वाल स्ट्रीट कसीनो की कहानियाँ या फिर कम्पनियों द्वारा जीवन बीमा के खेल या होम फोरक्लोज़र्स की विदारक कहानियाँ. अंग्रेज़ी का एक शब्द है ऐवरिस, लोभ.

पूरी फिल्म देखते बार बार ये एहसास होता है कि इंसानी फितरत क्या सिर्फ इतनी है? फिल्म के एक सिक्वेंस में पूछा जाता है, डिफाईन रिच, जवाब आता है- फाईव मेन. तो यही है कहानी, चाहे किसी भी देश की हो, किसी भी राजनैतिक तंत्र की या फिर किसी भी सामाजिक पद्धति की.

इसी सिलसिले में हॉब्सबॉम का यह इंटरव्‍यू भी गौरतलब है, जहाँ वो कहते हैं: “The basic problems of the 21st century would require solutions that neither the pure market, nor pure liberal democracy can adequately deal with. And to that extent, a different combination, a different mix of public and private, of state action and control and freedom would have to be worked out.”

क़ुछ नाटकीय अदाबाजियों के बावज़ूद मूर की फिल्म में एक किस्म का भोला निर्दोषपना है जहाँ टेढे मसले और बीहड़ आर्थिक जटिलताओं को साफ सरल तरीके से दर्शकों तक पहुँचाया जाता है और मूर फिल्म के अंत तक दर्शक को अपना भागीदार बना लेने में सफल होते हैं. अंतिम दृश्य में क्राईम सीन की पीली पट्टी लगाते मूर दर्शकों को कहते हैं कि उन्हें दर्शकों का साथ चाहिये, उन सबों का जो थियेटर में ये फिल्म देख रहे हैं. ये फिल्म इसी चेतनता को पाने के लिये देखनी चाहिये. अपने समय की सच्चाई का एक छोटा टुकड़ा क्योंकि सिर्फ इतनी कमियाँ इतना ही भ्रष्टाचार है, सोचना भी किसी भोली नासमझ दुनिया का वासी होना है. ये सिर्फ टिप ऑफ द आईसबर्ग है.

- प्रत्‍यक्षा

1/03/2011

Revisiting Bamako..

Bamako, 2006..

“So firstly, the world must consider Africa in a more impartial light. Because, when you look without bias, you realize that the “other” is really the same as you. However, as it stands today, the African is more different for others than others are for the African. In my opinion, perhaps it comes down to culture, Africans have a far greater sense of universality, than others do in their perception of Africans. This is very important point. My second concern is to articulate that, when all is said and done, the issue raised by “Bamako” is not a purely African issue. It is bigger than Africa. We’re talking about the world of money, the power of money. And if today, the prejudice of this world of money... Because Globalisation is about how we can make more money, and how quickly. It’s not about trying to embrace one another as quickly as possible, and give everyone kisses. This is not Globalisation. And this needs to be made clear. So, its very important for me that people understand that today, it’s not feasible to continue depriving part of the world of its wealth to make the rest more wealthy. If the consequences of this are clear in Africa today, It’s because Africa is weaker, and so the repercussions are visible. But the west, too, will have to pay the consequences of this world view, this money-centred ethic.”

Abderrahmane Sissako, from a video interview.

(above in the photo with Juliette Binoche, far left, at Cannes Festival, 2009)

1/02/2011

मैंने नहीं किया, शायद जीवन ने किया हो..

बारह साल के जेरोम के सर का भारी घड़ा हर समय शर्म से भरा रहता है कि पड़ोस के अन्‍य घरों की तरह उसका घर 'नॉर्मल' क्‍यों नहीं. घर के अहाते में तमाशा बने बाप के आगे जेरोम गिड़गिड़ाता है कि पप्‍पा, प्‍लीज़, पड़ोस के सबलोग हमें पागल समझते है? बाप बच्‍च्‍ो को आश्‍वस्‍त करता है कि सही समझते हैं, वी आर ए क्रेजी फ़ैमिली! मैं जिस तरह खुशी में घबराकर सिगरेट जला लेता हूं, जेरोम का हूनरमंद छोटा भाई लेओं गले में फंदा लगा लेने का टाईमपास करता है, स्‍क्रू ड्राइवर से खिड़की तोड़कर छुट्टी पर बाहर गए पड़ोसियों के घर 'डाका' डालता है, माथे पर दुख ज़्यादा चढ़ने लगे (या असमंजस. दोनों एक ही नहीं?) तो घबराकर छुरी से कंधा चीर लेता है, या बीस मीटर ऊंचाई से लहराकर नीचे कूद जाता है. यह सारी फुलकारियां कैनेडियन फ्रेंच फ़िल्‍म 'कसम खाकर कहता हूं, मैंने नहीं किया' की फूल-पत्तियां हैं. जेरोम की दस वर्षीय दु:खहारी पगलाहटों की संगत में मॉंट्रियल की हरियाली में हरा होते हुए मन बाग़-बाग़ हो जाता है. पता नहीं कुछ खुराफाती कैसे होता है कि उदासियों का ऐसा मीठा सिनेमा रच लेते हैं. जबकि फिलीप फलादेउ उम्र में मुझसे सात वर्ष छोटा है और कुछ दिनों पहले मैंने उसकी एक और फ़िल्‍म देखी थी, 'फ्रिज़ का बायां किनारा', दु:खभूगोल के उल्‍टे-सीधे मनचीरकारी उसमें भी थे, पर ऐसा मार्मिक उत्‍पात कहां था? आंद्रे तरपिन की ऐसी सिनेकारी कहां थी, कि पैट्रिक वॉटसन का, बांस के जंगलों में दीवारों के बीच दबी, फंसी, ऐंठी बजती हवा की मनतोड़ संगीत की संगत नहीं थी, इसलिए?

मैं बहकता जाऊंगा इसलिए बेहतर है पहले आप उस बहन में गिरकर बहक जाने की जगह पैट्रिक के एक ट्रैक में मन का सुर सेट कर लें. साथ ही 'कसम' का ट्रेलर देख लें (हालांकि ट्रेलर फ़िल्‍म की खूबसूरती का रत्‍ती भर कंपेनसेशन नहीं)..

क्‍या है कैनडा में, कहां से उस शांत लगभग निर्विकार लैंडस्‍कैप में मनहारे के इंटेंस पहाड़ फूटते रहते हैं? ऑलिवियेर असाये का 'क्लीन' और 'समर अवर्स' और डेनी आरकां की (जीसस ऑफ़ मांट्रियल, द बारबेरियन इनवेज़ंस) जैसी अनोखी, विरल सिनेनिबंध फूटते रहते हैं? असाये ने पिछले साल टेलीविज़न के लिए साढ़े पांच घंटे की 'कारलोस' तैयार की (प्रमोद सिंह ने देख ली, और बुरी नहीं है)..

कृपया कुछ और फ़ि‍ल्‍मों पर नज़र रखें (क्‍योंकि कैनेडियन फ़ि‍ल्‍ममेकर हमसे भले मनवाना चाहें दु:ख पर उनकी बपौती नहीं. मन में लेओं का स्‍क्रूड्राइवर चलाने को पड़ोस का अमरीका भी बीच-बीच में वैसा ही हहियाता रहता है. नोट करें 'द किड्स आर ऑल राइट', केविन स्‍पेसी की 'श्रिंक', 'लाइफ ड्यूरिंग वॉरटाइम'. फिर ऑस्‍ट्रेलिया भी पीछे नहीं छूट रहा, उसके शो-केस में है 'एनीमल किंगडम',, एनीमेटेड 'मैरी एंड मैक्‍स' और 'लैंटाना'. पिछले दिनों सुना युक्राइना भी अपनी आमद बताने पिछले वर्ष कान अपनी एक फिल्‍म 'माई जॉयज़' के साथ पहुंचा हुआ था (नाम से धोखे़ में न जायें, हालांकि फ़ि‍ल्‍म अभी मैंने देखी नहीं है).

जय हो सदाबहार संसार. चलते-चलते पैट्रिक का एक और यह ट्रैक भी सुनते चलिए..

बकिया आप सभी को नया साल मुबारक हो..