12/13/2009

गोले, सामानों के शोले.. द स्‍टोरी ऑव स्टफ़

चीज़ों की ठीक-ठीक पहचान न होने से फिर चिरकुटइयां होती है. कल मुझसे हुई. लगा जैसे ड्रॉपबाक्‍स बता रहा है अपने पीसी का माल मैं उनके फॉल्‍डर में कॉपी करके चिपका दूं और फिर जिनसे कहूं वे ऑनलाइन उसे ड्रॉपबाक्‍स के फोल्‍डर में खोलकर पा लेंगे, डाउनलोड की ज़रुरत न होगी, सामान्‍य-ज्ञान वाला सामान्‍य और ज्ञान दोनों तत्‍वों को हवा करके मैं मुगालते में रहा कि इंटरनेट हवा में हवाई चीज़ें खुद-ब-खुद हो जायेंगी, लेकिन कहां से होतीं, भई? और क्‍यों होती? ऐसे तो घटिया साइंस-फ़ि‍क्‍शन तक में न होती होंगी.

ख़ैर, मतलब चिरकुटई हुई, फ़ि‍ल्‍म को जो जान नहीं रहे, शायद चाह भी नहीं रहे, उनके झोले में ठेलने की कसरत की गुनहग़ारी कुबूलता हूं, बकिया क्‍या, बकिया यही कि भई, अज्ञानी के ज्ञान से तो यह सब आगे भी होता रहेगा ही. जैसे अभी कह रहा हूं कि यह कुछ पचासेक एमबी की सरल-सी समझदार एनीमेशन फ़ि‍ल्‍म है, आप जाकर देख लो, देख ही नहीं लो देखने से पहले एक नज़र यह उनके वेबसाइट पर भी डाल लो. दिलचस्‍पी बनी रहे तो यह फ़ि‍ल्‍म की लिखाई के पीडीएफ फ़ाइल का लिंक रहा, इस पर भी नज़र से दौड़ लें..

(भूपेन के लिए)

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