भागाभागी में जीवन के कैसे दुर्योग हैं कि जिस दुनिया में आपका मन रमता है अब उसकी तक ज़रूरी नहीं खुद को ठीक-ठीक ख़बर रहे (वैसे मैं तो भागता भी कहां हूं? जो और जितना भागना है खुद से ही भागना है!). सिनेमा की रखता हूं फिर पता चलता है शायद नहीं रख सका हूं. अभी थोड़ा समय हुआ एक स्वीडिश फ़िल्म ‘तिलस्सामांस’ (साथ-साथ) पर नज़र गई तो पता चला 2000 की है हमारे अब जाकर हाथ लगी है. साथ ही यह भी पता चला लुकास मूदीस्सॉन इसके पहले ‘शो मी लव’ बना चुके हैं, ‘तिलस्सामांस’ के बाद ‘लिल्या 4 एवर’ वाली शोहरत कमा चुके हैं, और उसके बाद काफी निजी किस्म की चार और फ़िल्में बनाई हैं. कहने का मतलब लगता है बीच मेले में खड़े रहते हैं और कितने मीत हैं उनके प्रीत पर नज़र नहीं पड़ती! कहां फंसी रहती है? कहीं तो रहती होगी जो ‘मेमरिज़ ऑव मर्डर’ के कोरियाई निर्देशक बॉंग जून-हो के काम तक पर भी नहीं पड़ी थी. सचमुच, कोई बताये खुद को बतायें क्या?
यह बॉंग जून-हो से एक बातचीत का लिंक है. यह एक दूसरा है. यह एक लुकास के साथ इंटरव्यू का लिंक है.
(ऊपर: 'मेमरिज़ ऑव मर्डर' का कोरियाई पोस्टर)
1 comment:
सिनेमा कला पर बहुत अच्छा ब्लॉग है आपका इसका प्रसार करें
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