7/07/2016

फिल्‍मी बातें..

कभी इटली में कुछ समय गुज़रा था, तो रह-रहकर वहां की फिल्‍मों में झांक आने का मोह स्‍वाभाविक है. कभी-कभी कुछ अच्‍छा हाथ चढ़ता भी है, लेकिन मोस्‍टली, ऐसे सिरजनहारे दिखते हैं कि दिल फांक-फांक हो जाता है. अभी एक, दो और तीन दिखे ये.. दिक्‍कत क्‍या है? पाओलो विर्जी की इटली में साख है, काफी सारे पुरस्‍कार मिलते रहे हैं, फिल्‍में दर्शकों में सराही जाती रही हैं, समीक्षकों का भी भाव मिलता रहा है, तो फिर..? वह पाओलो की ही नहीं, थोड़ा डिटैच होकर सोचने पर पूरे इटैलियन सिनेमा की दिक्‍कत लगती है. कि इतिहास, संवेदना, मन की उछाल, सबकुछ जैसे देश और समय की इतनी लकीरें खींच दी गई हों, उस समय-स्‍थान के खिंचे हुए दड़बे में बंद हो. कोई वृहत्‍तर विकलता, उक्षृंखलता उसे हवा में उछालकर पूरी दुनिया का होने से रोके रखती हो. मालूम नहीं, दुनिया भर में फिल्‍में स्‍थान-बद्ध होती हैं, अंग्रेजी में जिसे हम रूटेड कहते हैं, और जो हिन्‍दी सिनेमा का सबसे बड़ा दोष है कि वह स्वित्‍ज़रलैंड घूम आती है, छत्‍तीसगढ़ि‍या गाना आती है, सब कहीं फैली होती है मगर उसके किरदार, और न फिल्‍म, कहीं रूटेड होती है. तो स्‍थान-बद्धता तो अच्‍छा और फ़ायदे की चीज़ होनी चाहिए, मगर इटैलियन सिनेमा के लिए वह रेत में कुछ मुंह छुपाये की कला होकर रह गई है. पिछले बीस वर्षों से तो बहुत कुछ यही दुनिया देख रहा हूं.

जबकि थोड़े कम बजट और कम कमाई वाले अभिनेताओं की बुनावट की छोटी अमरीकी फिल्‍में कुछ इन्‍हीं गुणों की वजह से बार-बार दिखता रहा है कि कुछ स्‍पेशल एंटरटेनमेंट में बदलती रहती हैं. अभी हाल की देखी कुछ ऐसों की गिनती गिनाता हूं, इनमें से किसी फिल्‍म के पास बहुत पैसा नहीं था, कुछ लोग और कुछ जरा-सी स्थितियों की बतकहियां थीं, मगर ज़रा-सी स्थितियों की बत‍कहियों को गढ़ने का यह विशिष्‍ट अमरीकी सिनेमाई कौशल ओवरव्‍हेल्मिंगली इम्‍प्रेस करता रहता है. फंडामेंटल्‍स ऑफ केयरिंग, एडल्‍ट वर्ल्‍ड, द आर्ट ऑफ गेटिंग बाइ, स्‍टक इन लव सारी ऐसी फिल्‍में हैं जिसमें लोग सिर उठाकर ठीक से जीवन कैसे जियें की कला सीखने को कभी हल्‍के कभी ज़ोर से सिर फोड़ रहे हैं, और उनकी गुफ्तगू में आपका मन फंसा रहता है, वो कहीं का उड़ता जुलाब और खून खराब के ऊटपटांग अमानवीय कृ त्‍य होने को नहीं छटपटाते रहते.

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