2/21/2012

कैनडा की बबुनी तुतली पुतली..

अमरीका, और शायद दूसरी भी बड़ी दुनिया की नज़रों में एक लगभग बेमतलब-सा देश होता है, जिसके होने पर अमरीका में ढेरों लतीफ़े होते हैं, भले उस बेमतलबी, आज के कारोबारी देश-समय में एक अनोखी, अनूठी निर्माण व वितरण की संस्‍था‍ होती है, जिसकी छतरी के नीचे से न केवल क्‍लॉड जुत्रा का विरल तरल संसार (विनोदकुमार शुक्‍लीय संसार कहूं? मगर कुछ साहित्यिक परिचितों से पहले कहा था, वह बाद में जुत्रा प्रकरण पर मेरी राय सुनने से बचने लगे थे..) बाहर आया होता है, निगरानी में पूरा पूरा एक बागीचा होता है, कितनी, कहां-कहां की रुपकथाएं होती हैं, एनीमेशन का एक समूचा धनमन संसार होता है, बाकियों को बाद में समझते रहियेगा, फिलहाल यही एक और दो के ज़ायके में तरिये..  

1 comment:

rishu said...

krzysztof kieslowski ki movies ke bare me kuch likhen. maine a short film about love and three colors:blue dekhi aur mere dimag se utar nhi rhi hn.