भाषा: हिन्दी
साल: २००७
लेखक/निर्देशक:इम्तियाज़ अली
रेटिंग:**
उदीयमान निर्देशक इम्तियाज़ अली की पहली फ़िल्म ‘सोचा न था’ भी कुछ छोटी-मोटी कमियों के बावजूद एक ऐसी ताज़गी से भरी फ़िल्म थी जो किसी नए फ़िल्मकार से ही अपेक्षित होती है। मगर अपनी दूसरी फ़िल्म ‘जब वी मेट’ से उन्होने अपने भीतर की कलात्मक ईमानदारी का मुज़ाहिरा कर के फ़िल्म इंडस्ट्री के मठाधीशों के चूहे जैसे दिल को भयाकुल हो जाने का एक बड़ा कारण दे दिया है। क्योंकि वे हर सफल व्यक्ति की तरह वे दूसरों की सफलता की धमक से डरते हैं।
मैं उनके दिल को चूहेसम बता रहा हूँ क्योंकि करोड़पति अरबपति होने के बावजूद उनके भीतर अपनी ही बनाई किसी पिटी-पिटाई लीक छोड़कर कुछ अलग करने का साहस नहीं है। चूंकि पैसे के फेर में अपने दिल की आवाज़ सुनने का अभ्यास तो खत्म ही हो चुका है यह उनकी फ़िल्मों से समझ आता है। और दूसरों की दिलों की आवाज़ पर भरोसा करने की उदारता भी उनमें नहीं होती इसीलिए किसी नए को मौका देने के बावजूद उसकी स्वतःस्फूर्तता को लगातार एक समीकरण के अन्तर्गत दलित करते जाते हैं।
जब वी मेट एक रोमांटिक फ़िल्म है। एक लम्बी परम्परा है हमारे यहाँ रोमांटिक फ़िल्मों की। मगर पिछले सालों में मैने एक अच्छी रोमांटिक फ़िल्म कब देखी थी याद नहीं आता। ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे’ और ‘कुछ कुछ होता है’ को मात्र मसाला फ़िल्में मानता हूँ, उसमें असली रोमांस नहीं है। असली रोमांस देखना हो तो जा कर देखिये जब वी मेट।
-अभय तिवारी
1 comment:
जरुर देखते हैं.
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