डाइरेक्टर: कारिन आलबू
साल: 2005
अवधि: 96 मिनट
रेटिंग: ***
पैरिस के सबर्ब का एक निम्नवित्तीय हिस्सा है जिसे छोटे जेरुसलेम का नाम मिला हुआ है. टाइटल्स के बाद कैमरा धीमे-धीमे, पियानो के दबे संगीत के साथ, इसी दुनिया में उतरता है. छोटे, घेट्टोआइज़्ड ज्युइश समुदाय के रीत-रिवाज़ों से गहरे जुड़ी, अट्ठारह वर्षीय लौरा दर्शन की स्टूडेंट है, कांट के नक़्शे-कदम पर रोज़ एक तयशुदा रास्ते पर बिला नागा अपने टहल के लिए निकलती है. ट्युनिशिया से फ्रांस आकर अपनी दुनिया खड़ी करने की कोशिश में जुटे इस परिवार में धर्म और विश्वास का विशेष महत्व है. चार छोटे-छोटे बच्चों की मां- लौरा की बड़ी बहन मातिल्दे का पति आरियल समुदाय की चर्यायों में विशेष सक्रिय भी है. मां ट्युनिशिया के अपने बचपन वाले दिनों के ढेरों विश्वास को इतनी दूर पैरिस के सबर्ब में अब भी जिलाये रखने के तरीके जानती है. मगर परंपरा के इन भारी तानेबानों के बीच- खुद काफ़ी मज़बूत धार्मिक आस्था रखनेवाली लौरा की दुनिया, एक अनपेक्षित अश्वेत (लड़का अल्जीरिया से भागकर आया अश्वेत ग़ैरक़ानूनी आप्रवासी है) प्रेम के राह में चले आने पर अचानक कैसे तक़लीफ़देह सवालों का सामने करने का सबब बनती है, ‘ला पेतित जेरुसलेम’ इसी का एक्सप्लोरेशन है.
एक सधी, दुरुस्त अनाटकीय चाल में चलता अच्छा-प्यारा-सा मानवीय सिनेमेटिक दस्तावेज़. 2005 में फ़िल्म फ्रेंच सिंडिकेट ऑव सिनेमा क्रिटिक्स की ओर से श्रेष्ठ पहली फ़िल्म व कान फ़िल्म समारोह में श्रेष्ठ पटकथा के पुरस्कार से नवाजी जा चुकी है. फ़िल्म की निर्देशिका कारिन आलबू के मां-पिता अल्जीरिया से थे. ‘ला पेतित जेरुसलेम’ उनकी पहली फ़िल्म है. एक करियर की बहुत ही अच्छी शुरुआत.
1 comment:
यानी आप फ्रेंच फिल्म फेस्टिवल देख रहे हैं । देखिएगा कहीं हम भी ना दिख जाऐं किसी दिन वहीं ।
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