3/08/2016

लड़कियों की, संयोग ही होगा, सिनेमा होगा..

औरतों के जीवन पर दो टेढ़ी-मेढ़ी फ़ि‍ल्‍में देखकर मन लाजवाब हुआ. मज़ेदार यह कि रात-रात भर उनींदे में यहां-वहां इतना-इतना बीनते रहते हैं, मगर इन- एक और दो- दोनों ही फ़ि‍ल्‍मकारों के काज से कभी भी पहले टकराहट नहीं हुई थी, और एक दूसरी वैसी ही मज़ेदार बात यह कि बॉयज़ आन द साइड हरबर्ट साहब की आखि़री फ़ि‍ल्‍म है (किसी करियर के अंत का फिर कैसा शानदार फिनिशिंग स्‍ट्रोक है, मेरी लुई पार्कर, व्‍हूपी गोल्‍डबर्ग और ड्रयू बैरिमोर की एक्टिंग के बाबत सोचता अभी भी भावुक हो रहा हूं, और फिर इतना तो सिनेमाई साउंड डिज़ाईन, और वैसी ही मन को ऊपर-नीचे करती उसकी साउंड-एडिटिंग), जैसेकि माई ब्रिलियेंट करियर माइल्‍स फ्रैंकलिन की पहली किताब है, कहते हैं हंसते-खेलते उसने सोलह साल की अवस्‍था में लिख ली थी, और यह सोचकर लिखी थी कि दोस्‍तों का एंटरटेनमेंट करेगी. जिलियन आर्मस्‍ट्रॉंग की फ़ि‍ल्‍म ने तो मेरा किया ही, और ऐसा किया जो बहुत-बहुत समय से नहीं किया था. जियो, लइकियो..

1 comment:

Neeraj Rohilla said...

Many thanks for references and list of movies to add to watchlist.

Regards,
Neeraj