8/03/2009

अप..



महाराज, आइए, आराम से नीचे आइये.. या फिर ऐसा है मुझी को ऊपर कहीं नीले में उड़वाइये.. अब जो करना है, जल्‍दी बताइये.. मैं बस राह तक रहा हूं (आप लव आज तक का तक रहे होंगे, मैं बुड्ढे को ही निरख रहा हूं, पिक्‍सार की नयी एनीमेशन है.. हालांकि पोस्‍टर के बाद अभी असल चीज़ निरखना बाकी है)..

रात को तीन निर्देशकों की मिलकर बनायी 'टोकियो' देख रहा था, चखने को वह शराब भी बुरी नहीं. तीन कहानियों में एक अपने जून हो बॉंग की है.

2 comments:

Unknown said...

..........had thoroughly enjoyed UP!!

Lokesh Paliwal said...

hello pramod ji
i have gone through your story MACHALIGHAR in patrika. firstly i would like to congrts for the well written story with a great intelectual writing but it seems quite uneasy to understand the story in first reading. so keep up the your writing in that manner where normal man can easly understand it.
please do not take it any other way it is simply a advice.
lokesh paliwal