1/27/2008

रिज़र्वेशन रोड

साल: 2007
भाषा: अंग्रेजी
लेखक: जॉन बर्न्हम श्‍वॉटर्ज़ व टेरी जॉर्ज
निर्देशक: टेरी जॉर्ज
रेटिंग: **

हमारी आत्‍मा में झांके फ़ि‍ल्‍म हमारे यहां इतना विकसित माध्‍यम नहीं. गाहे-बगाहे आंख में झांक जाये उतने से ही हम आत्‍मा जुड़ा लेते है. नहीं तो औसतन तो यही होता है कि ज़्यादा वक़्त किसी ‘संडे’, किसी ‘वेलकम’ की संगत में हेंहें-ठेंठें करते हैं और नहीं करनेवाले को बिना बोले नज़रों से जवाब देते हैं कि इसमें अजीब क्‍या है.. टेरी जॉर्ज़ की ‘रिज़र्वेशन रोड’ की यही खूबी है कि वह आत्‍मा में झांकती नहीं, फ़ि‍ल्‍माअवधि के अधिकांश में वहीं बनी रहती है. कभी इतनी-इतनी देर तक रहती है कि फ़ि‍ल्‍म के क़ि‍रदारों के साथ हम भी वही तक़लीफ़ें और संत्रास जीने लगते हैं जिसने एक पारिवारिक दुर्घटना में उलझाकर एकदम से उनका धरातल बदल दिया है. बाज वक़्त लगता है त्रासदी में इन्‍वॉल्‍व्‍ड ये चरित्र हाड़-मांस की देह नहीं, मन:स्थितियों का विशुद्ध गैस और इमोशन हैं! थोड़ी नाटकीयता का रिस्‍क लेते हुए कहना चाहूंगा कि इन अर्थों में फ़ि‍ल्‍म के चरित्र जैसे लगातार एक दोस्‍तॉव्‍स्‍कीयन दुनिया में मूव करते रहते हैं. टेरी जॉर्ज़ की एक सबसे सराहनीय बात है कि कहानी की महानाटकीयता के बावजूद फ़ि‍ल्‍म कहीं भी नाटकीय लटकों में नहीं फंसती. फ़ि‍ल्‍म के शुरुआती दस मिनटों में अलबत्‍ता इस ख़तरे की आशंका होती है.. मगर उसके बाद की अवधि अच्‍छी, ईमानदार फ़ि‍ल्‍मों के भूखे दर्शक को खांटी सिनेमा से आश्‍वस्‍त करती है. अच्‍छे तो सब हैं लेकिन त्रासदी में सबसे ज्यादा उलझे चरित्रों को प्‍ले कर रहे जॉकिम फिनिक्‍स और मार्क रफ्फलो दोनों की एक्टिंग काफी इम्‍प्रेसिव है..

कंटेपररी समय में शहरी जीवन के मनोलोक के पारदर्शी सिनेमा में आपकी रुचि हो तो ‘रिज़र्वेशन रोड’ तक की एक कसरत आप भी कर आइए.

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