9/10/2021

लघुकाय भेदकारी दिलदारियां

 

तीन फ़ि‍ल्‍मों की तीन रातें। बहुत देर और बहुत दूर तक आपकों फंसाये रहती हैं। जैसे अफ़ग़ानिस्‍तान पर आनंद गोपाल की 2015 की किताब। किताब पढ़ते हुए बार-बार होता है कि आप हाथ की किताब कुछ दूर रखकर सोचने लगते हैं। और देर तक सोचते रहते हैं कि इस दुनिया का हिसाब-किताब चलता कैसे है। या राजनीति का कूट संसार चलानेवालों को किसी गहरे कुएं में धकेलकर हमेशा-हमेशा के लिए उन्‍हें वहां छोड़ क्‍यों नहीं दिया जाता?

'फिरंगी चिट्ठि‍यां, 2012’, बचपन की दोस्तियों की दिलतोड़ तक़लीफ़ों की मन में खड़खड़ाती आवाज़ करती, और फिर किसी घने, विराट छांहदार वृक्ष के दुलार में समेटती दुलारी फ़िल्‍म है। अज़ोर, 2021’, अंद्रेयास फोंताना की पहली फ़ि‍ल्‍म।  प्रकट तौर पर कोई हिंसा नहीं, मगर समूचे समय एक दमघोंट किस्‍म का तनाव आपको दबोचे रहता है। क्‍या है यह तनाव? यह अस्‍सी के दशक का अर्जेंटीना है। अंद्रेयास का काम घातक तरीके का दिलफरेबी सिनेमा है, जैसे 2019 की शाओगांग गु की चीनी फ़ि‍ल्‍म है।

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