
क्रांति के ठीक पहले शाह द्वारा आयातित पश्चिमी ‘पतनशील’ फिल्मों के प्रति आम गुस्सा जिसमें तेहरान के 180 सिनेमा हॉलों को आग के हवाले कर दिया गया, और स्वदेस वापसी पर खोमैनी के पहले ही भाषण में सिनेमा की उपयोगिता की चर्चा इसका सीधा संकेत थी कि ईरानी मानस में सिनेमा को कितना महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था, और आनेवाले दिनों के रेजिमेंटेशन में या तो वह पूरी तरह विलुप्त हो जाती, या फिर अपनी बुनावट की साज-संवार के साथ सिनेमा के एक नए दौर में प्रवेश करती. इन अतिवादी मुश्किलों, तनावों के बीच ही ईरान की कला-सिनेमा ने धीरे-धीरे अपने पैर जमाना शुरु किया. क्यारोस्तामी जो काफी वर्षों से बच्चों की एक संस्था से जुड़े थे इन तनावों का बेहतर तरीके से सामना करने की स्थिति में थे. बच्चों के साथ फिल्म करने का एक सीधा फायदा यह था कि सरकारी वर्जनायें (सेक्स, रोमांस, हिंसा) वहां यूं भी बेमानी हो जाती थी, मगर साथ ही, बच्चों की वजह से, समाज-समीक्षा का दायरा और अंतरंग हो जाता था. उदाहरण के लिए तसल्ली व प्यार-दुलार की पारंपरिक भूमिकाओं के निर्वाह की जगह परिवार इन फिल्मों में तनाव व द्वंद्व दर्शाने का मंच बनता है, जो आस-पास की सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों की वजह से खड़े हो रहे थे. (दोस्त का घर कहां है?).

(जारी...)
(क्यारोस्तामी की 'थ्रू द ऑलिव ट्रीज़' की दुनिया)
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