3/21/2007

अनोखेपन की बुनकारी

ईरानी सिनेमा: तीन

ईरान के सिनेमाई परिदृश्‍य में अगली मज़ेदार और अनोखी बात यह हुई कि आनेवाले वर्षों के राजनीतिक-सामाजिक तूफान ने गाय को और बड़ी ऊंचाई मुहैया करवाई. फिल्‍म की सफलता के आठ वर्षों के उपरांत, 1979 में शाह सत्‍ताच्‍यूत हुए और उनकी जगह अयातोल्‍लाह खोमैनी के इस्‍लामिक गणतंत्र की स्‍थापना हुई. अपने आरंभिक भाषणों में एक में खोमैनी ने कहा कि सिनेमा पतित और जुगुप्‍सा जगानेवाला हो गया है (यह कमेंट बहुत गलत था भी नहीं) और यह कि नये सामाजिक, धार्मिक मूल्‍यों की स्‍थापना में उसे शैक्षिक सहयोगी की भूमिका में उतरना होगा. फिल्‍में किस तरह बननी चाहिये के हवाले में खोमैनी ने – सोचिये, और किसी फिल्‍म का नहीं- गाय का जिक्र किया और तदंतर सरकार की ओर से उन जटिल व उलझावभरे नियमों की प्रस्‍तावना हुई जिसके सेंसरशिप में आगे ईरान में फिल्‍मों को बनाये जाने की अनुमति मिलनी थी.

केश दिखाती औरतें, रोमांस, किसी भी तरह का छुआ-छुऔव्‍वल, शारीरिक कामना, निरर्थक हिंसा सब पर गणतंत्र ने प्रतिबंध लगा दिया. मतलब समाज के लिए अर्थपूर्ण लेकिन दर्शकों के लिए उबाऊ फिल्‍मों के आधार की स्‍थापना हुई. ऊपर से देखने पर अंदाज़ ऐसा ही होता है मगर असलियत में हुआ इसके ठीक उल्‍टा. खोमैनी के प्रतिबंधों ने ईरानी सिनेमा के स्‍तर में एकदम-से बढ़ोत्‍तरी कर दी. पहली बात तो यह हुई इसने फिल्‍मकारों को बाज़ार के दबावों से आज़ाद कर दिया. दूसरे, सेंसरशिप के प्रतिबंध ने उन्‍हें और ज्‍यादा कल्‍पनाशील बनाया. तीसरे, सिर्फ घटिया मनोरंजन जनते रहने के जिम्‍मे से मुक्‍त होकर अब वे ज्‍याद: ऊंची उड़ानें भर सकते थे.

प्रतिबंधों की नियमावली के ढंग से समाज में धंस चुकने के पश्‍चात ईरानी सिनेमा का एक स्‍वर्णकाल शुरु हुआ. पश्चिम में सिनेमा जब अपने पतन के चरम में था, 1986 में, नये ईरानी सिनेमा के सबसे महत्‍वपूर्ण हस्‍ताक्षर अब्‍बास क्‍यारोस्‍तामी उनके बीच अपनी फिल्‍म दोस्‍त का घर कहां है? लेकर पहुंचे. पश्चिम के पतन और पूरब के नये ताप की इससे बड़ी विरोधाभासी संगत नहीं हो सकती थी.

(जारी...)

(ऊपर इस्‍लामिक गणतंत्र से पहले की फिल्‍मों का एक कोलाज़)

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