9/23/2008

किसे ज़रूरत है फ़ि‍ल्‍म समीक्षकों की?

किसी फ़ि‍ल्‍म की किस्‍मत का फ़ैसला उसकी समीक्षा करनेवालों की लिखायी से होना धीमे- धीमे क्रमश: हुआ है. ब्रितानी फ़ि‍ल्‍म पत्रिका साइट एंड साऊंड के ताज़ा अंक में निक जेम्‍स इस पर कुछ विस्‍तार से बता रहे हैं..

“We live in a culture that is either afraid or disdainful of unvarnished truth and of sceptical analysis. The culture prefers, it seems, the sponsored slogan to judicious assessment. Given that the newspapers are so in thrall to marketing, you might think that they would feel responsible for their own decline. But plenty of veteran hacks claim it was always like this…”

पूरा लेख यहां पढ़ें.

2 comments:

Ghost Buster said...

ये सब क्या है? अपने नाम से बुला लिए यहाँ और निक जेम्स का लिंक देकर निकल लिए. बहुत ही गल्त बात है.

PD said...

सच्ची सर, बहुत दिन हो गये आपने कुछ लिखा नहीं है इस चिट्ठे पर.. कुछ धांसू सा पढाईये.. ये मेरे उन कुछ गिने चुने शुरूवाती चिट्ठों में से है जिस पर मैंने आना-जाना शुरू किया था..