
देख रहा हूं, लिंक्स लपेट रहा हूं: जिया झ्यांगके की चीनी दुनिया, कॉमिक आर्टिस्ट से सिनेमा में हाथ आजमा रहे एनकी बिलाल की फ्रेंच बंकर पैलेस हॉटेल, और कॉंन्सतांतिन लॉपुशांस्क्ी की रूसी द अग्ली स्वान्स..

दस-दस मिनट के पांच टुकड़े हैं, इस दुनिया का हिसाब-किताब कैसे चलता है जानने में आपकी बालसुलभ जिज्ञासा हो तो देख डालिये. मैंने नेट से डाऊनलोड करके पूरी डॉक्यूमेंट्री एक साथ देखी, बालसुलभ प्रसन्नता हुई. हमारे, अनिल व अभय जैसे पहुंचे हुए बुद्धिज्ञानी क्यों नहीं बैठे-बैठे ऐसी फ़िल्में बना पाते हैं मेरे लिए गहरे ताज़्ज़ुब का विषय है. जबकि पैडी जो शैनन ने बैठे-बैठे इतने मुश्किल विषय को बच्चों की सहजता से कह लिया है वह ऐसा ताज़्ज़ुब नहीं जगाता. न वल्र्ड सोशलिस्ट मूवमेंट का ऐसे बुद्धिसरस उद्यम में समय जाया करना. क्योंकि सच्चायी तो यही है कि बुद्धि-उद्यम के अब जितने उपक्रम हैं, सब मुनाफ़ा-उपक्रमों का माध्यम बनकर रह गये हैं, जनजागरण के किसी सरल-गरल प्रवर्तन में उनकी दिलचस्पी कहां बनती है?..