tag:blogger.com,1999:blog-1655044654219612786.post6455365864715660585..comments2023-09-10T17:30:42.827+05:30Comments on cinema- सिलेमा: चक दे! इंडियाazdakhttp://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-1655044654219612786.post-36507689850115375902007-08-25T20:32:00.000+05:302007-08-25T20:32:00.000+05:30अगर देखा जाए तो चक दे! पूरी तरह से बकवास फिल्म है ...अगर देखा जाए तो चक दे! पूरी तरह से बकवास फिल्म है या यो कहें की बालीबुड का एक और घोर-मट्ठा… मेरी नजर में किसी भी फिल्म का प्लाट प्वाइंट ऐसा होना चाहिए जो दर्शक को उसके साथ कहानी को जानने की जिज्ञासा में संघर्ष करना पढ़े…मगर इसमें ऐसा कही नहीं है हम यह जान रहे होते हैं कि अब क्या होने बाला है…। कहा जा रहा है की नारी उत्थान पर बनी यह अच्छी फिल्म है पर यह देखे कि एक नारी को सफल होने के लिए पुरुष कंधे की आवश्यकता पड़ती ही है और जिस फिल्म की यह नकल है उसमें परीक्षक भी एक महिला थी जो इससे काफी अच्छी मुवी थी…।Divine Indiahttps://www.blogger.com/profile/14469712797997282405noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1655044654219612786.post-60272831041366596612007-08-25T16:53:00.000+05:302007-08-25T16:53:00.000+05:30हमारे ख़्याल से इस फिल्म की सफलता का श्रेय सभी को ...हमारे ख़्याल से इस फिल्म की सफलता का श्रेय सभी को देना चाहिऐ क्यूंकि नयी लडकियां होने से फिल्म मे ताजगी सी नजर आयी और सभी ने बहुत ही कमाल का अभिनय किया है। और भाई हमे तो शाह रुख खान भी बहुत पसंद आया।mamtahttps://www.blogger.com/profile/05350694731690138562noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1655044654219612786.post-47279068639884022702007-08-25T14:56:00.000+05:302007-08-25T14:56:00.000+05:30हमारी देसी फ़िल्में इतनी घटिया हो चुकी हैं कि मैंन...हमारी देसी फ़िल्में इतनी घटिया हो चुकी हैं कि मैंने 'मरी भैंस की पूँछ पकड़ना' (बकौल कोमल चौटाला) ही छोड़ दिया था. इस फ़िल्म में भारत दिखता है, ताज़गी दिखती है और स्क्रीनप्ले और संवाद पर थोड़ी मेहनत की गई है. जिन भाइयों ने नहीं देखी है, देख सकते हैं, गालियाँ देने की गुंजाइस कम है.अनामदासhttps://www.blogger.com/profile/10451076231826044020noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1655044654219612786.post-54773126378030780402007-08-25T13:51:00.000+05:302007-08-25T13:51:00.000+05:30हमने भी देखी चकदे । वाक़ई अच्छी है । गानों के बार...हमने भी देखी चकदे । <BR/>वाक़ई अच्छी है । गानों के बारे में आपकी टिप्पणी लगभग सही है ।<BR/>लेकिन इस फिल्म का टाइटल गीत ठीकठाक है<BR/>पर शायद इस फिल्म से यशराज को समझ में आना चाहिये<BR/>कि भारतीय दर्शक की सेंसिविटी बदल रही है ।<BR/>झूम की बजाय चकदे <BR/>कहना उसे ज्यादा सुहा रहा है ।Yunus Khanhttps://www.blogger.com/profile/12193351231431541587noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1655044654219612786.post-42360749444971161742007-08-25T11:44:00.000+05:302007-08-25T11:44:00.000+05:30सब सही है गुरुजी..बस आखिर में सवाल रह जाता है.. चक...सब सही है गुरुजी..बस आखिर में सवाल रह जाता है.. चक दे माने क्या?अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.com